आज भी पिछले 700 सालों से इस जगह खेली जाती है ऐसे अनोखे अंदाज में,जाने पूरा विवरण इस लेख में

Lagaont Holi: आज भी पिछले 700 सालों से इस जगह खेली जाती है ऐसे अनोखे अंदाज में |ब्रज क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले आगरा के जगनेर ब्लॉक के गांव सरेंधी (sarendhi) में पिछले 700 सालों से एक अनूठी परंपरा चली आ रही है।

आज भी पिछले 700 सालों से इस जगह खेली जाती है ऐसे अनोखे अंदाज में,जाने पूरा विवरण इस लेख में
आज भी पिछले 700 सालों से इस जगह खेली जाती है ऐसे अनोखे अंदाज में,जाने पूरा विवरण इस लेख में

इस गाँव के युवा आज भी लंगोट पहनकर होली मनाते हैं। ये होली इस गाँव में प्रति वर्ष आयोजित होने वाले झू मेले (Jhoo Mela) के दौरान खेली जाती है।

Braj Holi 2025: रंगोत्सव को प्राचीन परंपरा संग मनाने से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। जनपद के जगनेर ब्लॉक के गांव सरेंधी(sarendhi) में भी होली बनाने की 700 साल पुरानी परंपरा है।

Sarendhi Lagaont Holi

Sarendhi Lagaont Holi

होली के दिन हुरियारों के 30 गुट लंगोट बांधकर एक प्राचीन के दरवाजे पर इकट्ठा होते हैं। दरवाजे से निकलने हेतु एक-दूसरे पर जोर आजमाइश करते दिखते हैं। इस दौरान ग्रामीणों द्वारा उन पर रंग डाला जाता हैं।

गांव के निवासियों की माने तो गांव बसाने वाले जागीरदार बाबा द्वारा यहां अचलम सिंह को नियुक्त कर दिया गया था। अचलम सिंह गांव के बीच में बने अपने मंच पर दरबार लगाते थे और ग्रामीणों के बीच होने वाले विवाद सुलझाते थे।

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होली के अगले दिन पड़वा के दौरान दरबार में झू का खास दंगल आयोजित किया जाता है। होली खेलने के बाद सभी हुरियारे स्नान करके लंगोट पहनते हैं और अपने-अपने घर के बाहर आकर खड़े हो जाते हैं।

गांव से जुड़ा एक नट ढोल को कंधे पर रखकर गलियों के अंतर्गत बजाते हुए घूमता रहता है। लंगोट पहने खड़े हुए हुरियारे उस नट के पीछे चलते हैं।

सभी एक साथ बाबा अचलम के दरबार में पहुंच जाते हैं। इसके बाद हुरियारे दरबार के बीच में बने दरवाजे के अंतर्गत दो भागों में बंटकर प्रवेश करने से जुड़ा प्रयास करते हैं।

इस मेले के दौरान करीब 2300 लोगों के 30 गुट होते हैं। इस गेट के जरिये उन्हें दो बार गुजरना पड़ता है। इस दौरान दोनों गुट द्वारा एक-दूसरे को धक्का दिया जाता है।

दंगल में जीतने हेतु एक गुट को दूसरे गुट को धक्का देते हुए उनके क्षेत्र में दो बार घुसना पड़ता है। इस दौरान हुरियारों के ऊपर पानी की बौछारे भी गिराई जाती है। जिसे बाबा अचलम से जुड़ा एक आशीर्वाद माना जाता है।

इस दंगल को देखने हेतु आसपास के क्षेत्र से हजारों लोग सरैंधी (sarendhi) आते हैं। मनोज शर्मा के अनुसार होली के दिन ही गांव के राजा वीरेंद्र सिंह द्वारा अचलम बाबा मंदिर के सामने बैठकर न्याय और गांव के विकास पर चर्चा की जाती है और ये परंपरा पिछले 700 सालों से लगातार चलती आ रही है।

क्या होता है झू मेला (jhoo mela)

jhoo mela

ग्रामीण मनोज शर्मा के अनुसार हुरियारे जो हनुमान रूपी लंगोट को बांधते हैं। उसे झू के नाम से पुकारा जाता है। इसी कारण इस मेले को भी झू मेला के नाम से पुकारा जाता है।